हिन्दू धर्म में भगवान शिव को सर्वोच्च ईश्वर, त्रिलोक के स्वामी और करुणा के सागर के रूप में पूजा जाता है। वे भक्तों के संकट हरने वाले हैं और उनकी अटूट भक्ति का सदा सम्मान करते हैं। पुराणों में अनेक कथाएँ मिलती हैं जो यह प्रमाणित करती हैं कि भगवान शिव अपने सच्चे भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करते हैं। उन्हीं में से एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा है महर्षि मृकंडु के पुत्र मार्कंडेय की, जिसे भगवान शिव ने स्वयं मृत्यु से बचाया और अमरत्व का वरदान दिया। यह कथा भागवत पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण में विस्तार से वर्णित है|
ऋषि मृकंडु की तपस्या
प्राचीन समय की बात है। भृगु ऋषि के वंश में एक अत्यंत तेजस्वी और धर्मपरायण मृकंडु ऋषि हुए। वे अत्यंत ज्ञानी और तपस्वी थे, परंतु संतानहीन होने के कारण उनके जीवन में दुःख व्याप्त था। संतान सुख की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपनी पत्नी मरुद्वती के साथ कठोर तपस्या आरंभ की। उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हजारों वर्षों तक घोर तप किया और उनकी स्तुति की।
भगवान शिव की प्रसन्नता एवं वरदान:
उनकी अटूट भक्ति और कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और बोले:
"हे मृकंडु! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ। तुम मुझसे एक वरदान माँग सकते हो।"
मृकंडु ऋषि ने श्रद्धापूर्वक प्रार्थना की:
"हे महादेव! यदि आप मुझ पर कृपा करें तो मुझे एक योग्य और तेजस्वी पुत्र प्रदान करें।"
भगवान शिव कुछ क्षणों के लिए मौन रहे और फिर बोले:
"हे मृकंडु! तुम्हारे लिए दो विकल्प हैं - या तो तुम्हें एक सामान्य पुत्र प्राप्त होगा जो दीर्घायु होगा, किंतु सामान्य बुद्धि का होगा; अथवा एक अलौकिक, तेजस्वी और विद्वान पुत्र होगा, परंतु उसकी आयु केवल 16 वर्ष होगी।"
मृकंडु ऋषि और उनकी पत्नी मरुद्वती ने विचार कर उत्तर दिया:
"हे महादेव! हमें एक दिव्य और तेजस्वी पुत्र ही चाहिए, भले ही उसकी आयु छोटी हो।"
भगवान शिव ने "तथास्तु" कहा और अंतर्ध्यान हो गए|
मार्कंडेय का जन्म और शिव भक्ति
कुछ समय बाद ऋषि मृकंडु के घर एक अत्यंत सुंदर, दिव्य और तेजस्वी बालक का जन्म हुआ। इस बालक का नाम रखा गया "मार्कंडेय"। जन्म से ही यह बालक विलक्षण था। वह अपनी बाल्यावस्था में ही वेदों, पुराणों, ज्योतिष और ब्रह्मविद्या में पारंगत हो गया। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, माता-पिता के मन में एक गहरी चिंता घर करने लगी। वे जानते थे कि जब मार्कंडेय 16 वर्ष का होगा, तब उसे मृत्यु का वरण करना होगा।
माता-पिता की इस चिंता को देखकर मार्कंडेय ने एक दिन उनसे इसका कारण पूछा। पहले तो वे चुप रहे, परंतु जब मार्कंडेय ने बार-बार आग्रह किया, तो ऋषि मृकंडु ने उसे उसके अल्पायु होने का सत्य बताया।
यह सुनकर मार्कंडेय बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ। उसने माता-पिता को सांत्वना दी और कहा:
"मुझे मृत्यु का भय नहीं है। मैं भगवान शिव की आराधना करूंगा। यदि मेरी भक्ति सच्ची होगी, तो महादेव मेरी रक्षा अवश्य करेंगे।"
इसके बाद मार्कंडेय ने महाकालेश्वर शिवलिंग की उपासना प्रारंभ कर दी। वह दिन-रात "ॐ नमः शिवाय" और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगा।
यमराज का आगमन और मार्कंडेय की परीक्षा
समय बीतता गया और अंततः मार्कंडेय के 16वें जन्मदिवस का दिन आ गया। नियति के अनुसार, मृत्यु के देवता यमराज को उस दिन मार्कंडेय के प्राण हरने के लिए भेजा गया।
जब यमराज आए, तब उन्होंने मार्कंडेय को गहरे ध्यान में देखा। वह शिवलिंग के समक्ष बैठकर भगवान शिव की स्तुति कर रहा था।
यमराज बोले:
"हे बालक! तुम्हारा समय पूर्ण हो चुका है। अब तुम्हें मेरे साथ आना होगा।"
लेकिन मार्कंडेय ने उत्तर दिया:
"हे यमराज! मेरी आयु का निर्णय भगवान शिव करेंगे, न कि आप। मैं उनके शरण में हूँ और मेरी रक्षा वे स्वयं करेंगे।"
यमराज ने कोई उत्तर नहीं दिया और उन्होंने अपना पाश (फंदा) फेंका। लेकिन संयोगवश वह फंदा मार्कंडेय के बजाय शिवलिंग पर पड़ गया।
जैसे ही फंदा शिवलिंग पर पड़ा, पूरी सृष्टि कांप उठी और अचानक शिवलिंग फट गया। उसमें से स्वयं भगवान महाकाल शिव प्रकट हुए। उनका रूप अत्यंत भयंकर था। उनकी आँखों से अग्नि निकल रही थी, और उनका त्रिशूल क्रोध से कंपायमान था।
भगवान शिव ने क्रोधित होकर कहा:
"हे यम! तूने मेरे प्रिय भक्त पर हाथ डालने की हिम्मत कैसे की? अब मैं तुझे दंड दूँगा।"
इतना कहते ही भगवान शिव ने अपना त्रिशूल यमराज पर चला दिया। यमराज तुरंत धराशायी हो गए और उनकी मृत्यु हो गई।
मार्कंडेय को अमरत्व का वरदान
देवताओं में हाहाकार मच गया। वे सभी भगवान शिव के पास पहुंचे और प्रार्थना करने लगे:
"हे प्रभु! यदि यमराज मृत रहेंगे, तो संसार में मृत्यु का क्रम समाप्त हो जाएगा। कृपया उन्हें पुनः जीवन दें।"
भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने यमराज को पुनः जीवित कर दिया। लेकिन साथ ही उन्होंने यह घोषणा की:
"अब से यह मेरा भक्त मार्कंडेय अमर रहेगा। इसे काल भी स्पर्श नहीं कर सकता।"
इस प्रकार, भगवान शिव की कृपा से मार्कंडेय को अमरत्व प्राप्त हुआ और वे सदैव चिरंजीवी ऋषियों में गिने जाने लगे।
कथा का संदेश
1. शिव भक्ति से असंभव भी संभव होता है – मार्कंडेय ने अपनी भक्ति से मृत्यु को भी जीत लिया।
2. सच्चे भक्तों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं – भगवान शिव ने अपने भक्त को बचाने के लिए यमराज का संहार कर दिया।
3. महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति – यह मंत्र व्यक्ति को अकाल मृत्यु और रोगों से बचाने में सहायक होता है।
इस कथा से यह सिद्ध होता है कि भगवान शिव अपने भक्तों के संकट को हरने वाले हैं। जो भी सच्चे हृदय से उनकी शरण में जाता है, उसे वे कभी कष्ट नहीं होने देते। महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से भय, रोग और अकाल मृत्यु टल सकती है। इसीलिए इसे संसार का सबसे शक्तिशाली मंत्र माना जाता है।
"ॐ त्र्यम्बकंयजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥"
हर हर महादेव! 🚩